शुक्रवार, 1 सितंबर 2017

Prabhu ka prem

सर्वशक्तिमान ईश्वर का प्रेम हमारे जीने का आधार है, क्यूंकि सर्वशक्तिमान ईश्वर  ने हमें प्रेम किया और हमारी सृष्टि की, हमें अपना प्रतिबिम्ब बनाया।  सर्वशक्तिमान ईश्वर दस प्रेम का यहाँ आरम्भ होता है।  उन्होंने हमारे मूल पाप को भी क्षमा किया और हमें स्वयं से वंचित नहीं किया।  यही कारण है की प्रेम हमारे धर्म का मूल मंत्र है।  जिस प्रकार सर्वशक्तिमान ईश्वर ने हमसे प्रेम किया वैसे ही हम परस्पर प्रेम करें।  ऐसा हो तो सवर्ग यहीं है।  क्योंकी  कहते हैं की सवर्ग बादलों से परे कोई स्थान नहीं बल्कि वह है जहाँ सर्वशक्तिमान ईश्वर रहते हैं और सर्वशक्तिमान ईश्वर वहां रहते हैं जहाँ प्रेम हो।
हम जानते हैं की पवित्र ग्रंथ मैं लिखा है की पृथ्वी पर जब पाप बढ़ा तो जलप्रलय हुआ।  पापियों  मैं से सर्वशक्तिमान ईश्वर ने एक धर्मी नूह को चुना और समस्त प्राणियों की रक्षा की।  यह भी तो उनके पवन निश्छल प्रेम के कारण ही था।  सर्वशक्तिमान ईश्वर का प्रेम ही तो था जिसके कारण उन्होंने इस्राएल के लोगों को मिस्र की गुलामी से स्वतंत्र किया।  और सर्वशक्तिमान ईश्वर के प्रेम का सबसे बड़ा प्रमाण तो प्रभु ईसा हैं। प्रभु ईसा जिन्होंने स्वयं को हमारे लिए बलिदान कर दिया और अब भी प्रेम के कारण ही हमारे साथ हैं।
प्रभु ईसा के हमारे प्रति प्रेम की कोई तुलना नहीं हो सकती।  वह अतुलनीय, महान , विशाल, अगाध, संपूर्ण, प्रगाढ़, अनंत , समर्पित, मधु से मीठा , शक्तिशाली है।  प्रभु ईसा हमारे जीवंत प्रभु हैं। वे पवित्र परमपसद में सदैव हमारे साथ हैं।
मदर टेरेसा के अनुसार दुनिया में बहुत गरीबी है , लोग रोटी के भूखे हैं लेकिन उससे भी ज्यादा भूख संसार में प्रेम की है।  प्रेम जहाँ नहीं वहां सर्वशक्तिमान ईश्वर नहीं।  प्रभु ईसा के होने से हमारा जीवन खुशियों से भर जाता है।  प्रभु ईसा के प्रेम का परिमाण यह है की उसका कोई परिमाण नहीं।  प्रभु ईसा के प्रति हमने प्रेम प्रदर्शित किया है ? प्रभु ईसा दूसरों की सेवा करते थे इसलिए प्रभु ईसा के प्रति कृतज्ञता प्रदर्शित करने का सही मार्ग यह है की हम भी दूसरों की सहायता करें।