मदर टेरेसा ऐसी शख्सियत जो गरीबों की सेवा के लिए जानी जाती हैं। मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को स्कोप्जे मैं हुआ था। उन्होंने 1916 में दृढ़ीकरण संस्कार प्राप्त किया। बचपन से ही उनके मन में प्रभु के प्रति अगाध प्रेम था जिसके फलस्वरूप वे 1928 में मिशनरी कार्य के प्रति समर्पित हो गयी। उन्होंने इन्सिटीट्यूट ऑफ़ ब्लेस्ड वर्जिन मेरी जो सिस्टर्स ऑफ़ लोरेटो के नाम से जाना जाता है में प्रवेश लिया। संसथान ने उन्हें नाम दिया` सिस्टर मैरी ऑफ़ टेरेसा'। मदर टेरेसा 1929 में पहली बार भारत आयी। भारत में उन्हें कलकत्ता में सेंट मैरी स्कूल ऑफ़ गर्ल्स मे पढ़ाने का कार्य दिया। और यही नींव डली मदर टेरेसा के मदर टेरेसा बनाने की। मदर टेरेसा के मन में करुणा और दया भरी थी और वे सेवाभाव से हर कार्य करती थीं। 1944 में वे स्कूल के प्रिंसिपल बनी। मदर टेरेसा के जीवन का टर्निंग पॉइंट 1946 में आया जब मदर टेरेसा को प्रभु से प्रेरणा मिली जो उनके अनुसार `बुलाहट के अंदर बुलाहट' है। मदर टेरेसा के अनुसार तब से प्रभु ईसा की प्रेम के लिए प्यास उनके जीवन का लक्ष्य बन गयी। मदर टेरेसा के अनुसार प्रभु ईसा ने अपने हृदय के इच्छा `उनका प्रेम के प्रकाश को मनुष्यों के हृदयो में प्रकाशमान करो' उन्हें बताई। प्रभु ईसा ने उन्हें बताया की वे गरीबो के दशा देख कर दुखी हैं तथा चाहते हैं की मदर टेरेसा मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी की स्थापना करें ताकि वे गरीब से गरीब की सेवा कर सकें। 1948 मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी की स्थापना हुई। और शुरू हुआ का गरीबो, बच्चो, बूड़ो के सेवा का सिलसिला। मदर टेरेसा के हर दिन की शुरुआत परमप्रसाद से होती थी। रोजरी हाथ में लिए वे गरीबो के सेवा में प्रभु ईसा की सेवा के लिए निकल जाती। इसमें उनका साथ दिया उनकी छात्राओं ने। फिरउन्होंने कई देशों में संस्थाओ की स्थापना की और सेवा करना प्रारम्भ किया। मदर टेरेसा को उनके सेवा कार्यो के लिए कई अवार्ड्स मिले जिनमे 1979 में नोबल शांति पुरस्कार प्रमुख है।
शुक्रवार, 2 सितंबर 2016
मदर टेरेसा ऐसी शख्सियत जो गरीबों की सेवा के लिए जानी जाती हैं। मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को स्कोप्जे मैं हुआ था। उन्होंने 1916 में दृढ़ीकरण संस्कार प्राप्त किया। बचपन से ही उनके मन में प्रभु के प्रति अगाध प्रेम था जिसके फलस्वरूप वे 1928 में मिशनरी कार्य के प्रति समर्पित हो गयी। उन्होंने इन्सिटीट्यूट ऑफ़ ब्लेस्ड वर्जिन मेरी जो सिस्टर्स ऑफ़ लोरेटो के नाम से जाना जाता है में प्रवेश लिया। संसथान ने उन्हें नाम दिया` सिस्टर मैरी ऑफ़ टेरेसा'। मदर टेरेसा 1929 में पहली बार भारत आयी। भारत में उन्हें कलकत्ता में सेंट मैरी स्कूल ऑफ़ गर्ल्स मे पढ़ाने का कार्य दिया। और यही नींव डली मदर टेरेसा के मदर टेरेसा बनाने की। मदर टेरेसा के मन में करुणा और दया भरी थी और वे सेवाभाव से हर कार्य करती थीं। 1944 में वे स्कूल के प्रिंसिपल बनी। मदर टेरेसा के जीवन का टर्निंग पॉइंट 1946 में आया जब मदर टेरेसा को प्रभु से प्रेरणा मिली जो उनके अनुसार `बुलाहट के अंदर बुलाहट' है। मदर टेरेसा के अनुसार तब से प्रभु ईसा की प्रेम के लिए प्यास उनके जीवन का लक्ष्य बन गयी। मदर टेरेसा के अनुसार प्रभु ईसा ने अपने हृदय के इच्छा `उनका प्रेम के प्रकाश को मनुष्यों के हृदयो में प्रकाशमान करो' उन्हें बताई। प्रभु ईसा ने उन्हें बताया की वे गरीबो के दशा देख कर दुखी हैं तथा चाहते हैं की मदर टेरेसा मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी की स्थापना करें ताकि वे गरीब से गरीब की सेवा कर सकें। 1948 मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी की स्थापना हुई। और शुरू हुआ का गरीबो, बच्चो, बूड़ो के सेवा का सिलसिला। मदर टेरेसा के हर दिन की शुरुआत परमप्रसाद से होती थी। रोजरी हाथ में लिए वे गरीबो के सेवा में प्रभु ईसा की सेवा के लिए निकल जाती। इसमें उनका साथ दिया उनकी छात्राओं ने। फिरउन्होंने कई देशों में संस्थाओ की स्थापना की और सेवा करना प्रारम्भ किया। मदर टेरेसा को उनके सेवा कार्यो के लिए कई अवार्ड्स मिले जिनमे 1979 में नोबल शांति पुरस्कार प्रमुख है।
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हे ईश्वर आप की अनंत कृपाओं के लिए हम आपका धन्यवाद करते हैं प्रभु ईसा आप हमारे तारणहार, पालनहार, रक्षक , मुक्तिदाता हैं हम आपकी शरण में है...
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