उस वरदान के अधिकार से जो मुझे प्राप्त हो गया है , मैं आप आप लोगों में हर एक से यह कहता हूँ -अपने को औचित्य से अधिक महत्व मत दीजिये। ईश्वर द्वारा प्रदत्त विश्वास की मात्रा के अनुरूप हर एक को अपने विषय में संतुलित विचार रखना चाहिए। जिस प्रकार हमारे एक शरीर में अनेक अंग होते हैं और सब अंगों का कार्य एक नहीं होता उसी प्रकार हम अनेक होते हुए भी मसीह में एक ही शरीर और एक दूसरे के अंग होते हैं। हम को प्राप्त अनुग्रह के अनुसार हमारे वरदान भी भिन्न भिन्न होते हैं। हमें भविष्यवाणी का वरदान मिला तो विश्वास के अनुरूप उसका उपयोग करें, सेवा कार्य का वरदान मिला तो सेवा कार्य में लगे रहें। शिक्षक शिक्षा देने में और उपदेशक उपदेश देने में लगे रहें। दान देने वाला उदार हो , अध्यक्ष कर्मठ हो और परोपकारक प्रसन्नचित्त हो।
[Rom 12:3-8]
[Rom 12:3-8]
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